श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 19: राजा पृथु के एक सौ अश्वमेध यज्ञ  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  4.19.14 
 
 
तं ताद‍ृशाकृतिं वीक्ष्य मेने धर्मं शरीरिणम् ।
जटिलं भस्मनाच्छन्नं तस्मै बाणं न मुञ्चति ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा इन्द्र छलिया वेश में संन्यासी बन गए थे, उनके सिर पर जटाओं का जूड़ा बंधा हुआ था और पूरा शरीर भस्म से सना हुआ था। ऐसा वेश देखकर राजा पृथु के पुत्र ने इन्द्र को धर्मनिष्ठ और पवित्र संन्यासी समझा, इसलिए उसने उन पर अपने बाण नहीं चलाए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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