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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 19: राजा पृथु के एक सौ अश्वमेध यज्ञ
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श्लोक 11
श्लोक
4.19.11
चरमेणाश्वमेधेन यजमाने यजुष्पतिम् ।
वैन्ये यज्ञपशुं स्पर्धन्नपोवाह तिरोहित: ॥ ११ ॥
अनुवाद
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जब महाराज पृथु अंतिम अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, तब इंद्र ने अदृश्य रूप से यज्ञ के घोड़े को चुरा लिया। उसने राजा पृथु से ईर्ष्या के भाव से ही ऐसा किया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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