अस्मिँल्लोकेऽथवामुष्मिन्मुनिभिस्तत्त्वदर्शिभि: ।
दृष्टा योगा: प्रयुक्ताश्च पुंसां श्रेय:प्रसिद्धये ॥ ३ ॥
अनुवाद
समाज को न केवल इस जीवन में बल्कि आने वाले जन्म में भी लाभ पहुँचाने के लिए महान ऋषियों और संतों ने जनता की समृद्धि के लिए कई तरह के अनुकूल तरीके सुझाए हैं।