प्रकल्प्य वत्सं कपिलं सिद्धा: सङ्कल्पनामयीम् ।
सिद्धिं नभसि विद्यां च ये च विद्याधरादय: ॥ १९ ॥
अनुवाद
तत्पश्चात् सिद्धलोक तथा विद्याधरलोक के वासीगण कपिल मुनि को बछड़ा बनाकर और सम्पूर्ण आकाश को पात्र बनाकर अणिमादि सब योगशक्तियों को दुहने लगे। विद्याधर लोक के वासीगण निःसन्देह आकाश में उड़ने की कला को भी प्राप्त कर लिए।