समां च कुरु मां राजन्देववृष्टं यथा पय: ।
अपर्तावपि भद्रं ते उपावर्तेत मे विभो ॥ ११ ॥
अनुवाद
प्रिय राजन, मैं तुम्हें सूचित करना चाहती हूँ कि तुम्हें सम्पूर्ण पृथ्वी की सतह को समतल करना होगा। वर्षा ऋतु के न रहने पर भी इससे मुझे सहायता मिलेगी। राजा इन्द्र की कृपा से ही वर्षा होती है। इस तरह वर्षा का जल पृथ्वी पर टिकेगा जिससे पृथ्वी हमेशा नम रहेगी और इस प्रकार यह सभी तरह के उत्पादन के लिए शुभ होगा।