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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 17: महाराज पृथु का पृथ्वी पर कुपित होना
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श्लोक 5
श्लोक
4.17.5
सनत्कुमाराद्भगवतो ब्रह्मन् ब्रह्मविदुत्तमात् ।
लब्ध्वा ज्ञानं सविज्ञानं राजर्षि: कां गतिं गत: ॥ ५ ॥
अनुवाद
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महान साधु राजा, महाराज पृथु को परम वैदिक विद्वान सनत्कुमार से ज्ञान प्राप्त हुआ। जीवन में इस ज्ञान को व्यवहार में लाने के पश्चात किस प्रकार उस राजा ने अपना इच्छित गंतव्य हासिल किया?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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