प्रहरन्ति न वै स्त्रीषु कृताग:स्वपि जन्तव: ।
किमुत त्वद्विधा राजन् करुणा दीनवत्सला: ॥ २० ॥
अनुवाद
यदि कोई औरत कोई पाप भी कर दे तो भी किसी को उस पर हाथ नहीं उठाना चाहिए। आप राजा हैं आप दयालू हैं तो आपके विषय में क्या कहना, आप प्रजा के रक्षक और दीनों पर दया करने वाले हैं।