श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 16: बन्दीजनों द्वारा राजा पृथु की स्तुति  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  4.16.23 
 
 
विस्फूर्जयन्नाजगवं धनु: स्वयंयदाचरत्क्ष्मामविषह्यमाजौ ।
तदा निलिल्युर्दिशि दिश्यसन्तोलाङ्गूलमुद्यम्य यथा मृगेन्द्र: ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  जब सिंह अपनी पूँछ को ऊपर उठाकर जंगल में विचरण करता है, तब सारे छोटे-मोटे जानवर अपने आप को छुपा लेते हैं। उसी तरह, जब राजा पृथु अपने राज्य की यात्रा करेंगे और अपने धनुष की डोरी से आवाज़ निकालेंगे, जो कि बकरियों और बैलों के सींगों से बनी है और युद्ध में अजेय है, तब सभी राक्षसी बदमाश और लुटेरे हर तरफ से छुप जाएँगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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