श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 16: बन्दीजनों द्वारा राजा पृथु की स्तुति  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  4.16.10 
 
 
अव्यक्तवर्त्मैष निगूढकार्योगम्भीरवेधा उपगुप्तवित्त: ।
अनन्तमाहात्म्यगुणैकधामापृथु: प्रचेता इव संवृतात्मा ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  गायकों ने आगे कहा : राजा द्वारा अपनाई गई नीतियों को कोई भी नहीं समझ सकेगा। उसके कार्य भी गुप्त रहेंगे और कोई यह न जान सकेगा कि वह प्रत्येक कार्य को किस प्रकार सफल बनाएगा। उसका खजाना सदा ही लोगों से अज्ञात रहेगा। वह अनन्त महिमा तथा उत्तम गुणों का भण्डार होगा। उसका पद स्थायी तथा गुप्त बना रहेगा जिस प्रकार समुद्रों के देवता वरुण चारों ओर जल से ढके रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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