श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 15: राजा पृथु की उत्पत्ति और राज्याभिषेक  »  श्लोक 9-10
 
 
श्लोक  4.15.9-10 
 
 
ब्रह्मा जगद्गुरुर्देवै: सहासृत्य सुरेश्वरै: ।
वैन्यस्य दक्षिणे हस्ते दृष्ट्वा चिह्नं गदाभृत: ॥ ९ ॥
पादयोररविन्दं च तं वै मेने हरे: कलाम् ।
यस्याप्रतिहतं चक्रमंश: स परमेष्ठिन: ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  संपूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी ब्रह्मा, देवताओं तथा उनके प्रमुखों सहित, वहाँ पधारे। राजा पृथु के दाहिने हाथ में विष्णु भगवान् की हथेली की रेखाएँ तथा चरण के तलवों पर कमल के चिह्न देखकर ब्रह्मा समझ गये कि राजा पृथु भगवान् के अंश-स्वरूप थे। जिसकी हथेली में चक्र तथा अन्य ऐसी रेखाएँ हों, उसे परमेश्वर का अंश या अवतार समझना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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