श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 15: राजा पृथु की उत्पत्ति और राज्याभिषेक  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  4.15.7 
 
 
मैत्रेय उवाच
प्रशंसन्ति स्म तं विप्रा गन्धर्वप्रवरा जगु: ।
मुमुचु: सुमनोधारा: सिद्धा नृत्यन्ति स्व:स्त्रिय: ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  महर्षि मैत्रेय ने आगे कहा: हे विदुर जी, उस समय समस्त ब्राह्मणों ने राजा पृथु की खूब प्रशंसा की और गंधर्व लोक के सबसे बढ़िया गायक उनकी स्तुति करते रहे। सिद्ध लोक के वासियों ने उन पर फूलों की वर्षा की और स्वर्ग की खूबसूरत अप्सराएँ खुशी से झूमकर नाचने लगीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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