श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 15: राजा पृथु की उत्पत्ति और राज्याभिषेक  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  4.15.19 
 
 
नाट्यं सुगीतं वादित्रमन्तर्धानं च खेचरा: ।
ऋषयश्चाशिष: सत्या: समुद्र: शङ्खमात्मजम् ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  बाह्य आकाश में विचरण करने वाले देवताओं ने राजा पृथु को नाटकों का प्रदर्शन करने, गीत गाने, संगीत वाद्ययंत्र बजाने और इच्छानुसार विलीन होने की कला प्रदान की। ऋषियों ने भी उन्हें अमोघ आशीर्वाद प्रदान किए। समुद्र ने उन्हें स्वयं समुद्र से उत्पन्न शंख भेंट किया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.