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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 14: राजा वेन की कथा
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श्लोक 7
श्लोक
4.14.7
वेनस्यावेक्ष्य मुनयो दुर्वृत्तस्य विचेष्टितम् ।
विमृश्य लोकव्यसनं कृपयोचु: स्म सत्रिण: ॥ ७ ॥
अनुवाद
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इसलिए सभी महान ऋषि एकत्र हुए और वेन के अत्याचारों को देखते हुए इस नतीजे पर पहुँचे कि संसार के लोगों पर एक महान संकट और तबाही आने वाली है। अत: वे दया से परस्पर बातें करने लगे, क्योंकि वे स्वयं यज्ञ करने वाले थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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