श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 14: राजा वेन की कथा  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  4.14.6 
 
 
न यष्टव्यं न दातव्यं न होतव्यं द्विजा: क्‍वचित् ।
इति न्यवारयद्धर्मं भेरीघोषेण सर्वश: ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा वेन ने अपने राज्यभर में यह ढिंढोरा पिटवा दिया कि सभी द्विज (ब्राह्मणों) को अब से किसी भी तरह का यज्ञ करने, दान देने या घृत अर्पण करने की मनाही है। दूसरे शब्दों में, उसने सभी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान बंद करा दिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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