जन्म लेते ही उसने (निषाद ने) राजा वेन के सभी पापों के परिणामों को स्वयं पर ले लिया। इस कारण निषाद जाति हमेशा चोरी, डकैती और शिकार जैसे पाप कर्मों में लिप्त रहती है। फलस्वरूप इन्हें केवल पहाड़ों और जंगलों में ही रहने दिया जाता है।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध चार के अंतर्गत चौदहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।