श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 14: राजा वेन की कथा  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  4.14.45 
 
 
तं तु तेऽवनतं दीनं किं करोमीति वादिनम् ।
निषीदेत्यब्रुवंस्तात स निषादस्ततोऽभवत् ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  वह बड़ा ही विनम्र था और जन्म लेते ही हाथ जोड़कर पूछा, "महाशय, मैं क्या करूं?" साधुओं ने कहा, "बैठ जाओ" (निषीद)। इस प्रकार नैषाद जाति का जनक निषाद का जन्म हुआ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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