श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 14: राजा वेन की कथा  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  4.14.44 
 
 
काककृष्णोऽतिह्रस्वाङ्गो ह्रस्वबाहुर्महाहनु: ।
ह्रस्वपान्निम्ननासाग्रो रक्ताक्षस्ताम्रमूर्धज: ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  यह व्यक्ति जो राजा वेन की जंघाओं से उत्पन्न हुआ था, उसका नाम बाहुक था। उसका रंग बिल्कुल कौवे की तरह काला था। उसके शरीर के सभी अंग छोटे थे, उसके हाथ और पैर छोटे थे और जबड़े बड़े थे। उसकी नाक चपटी थी, आँखें लाल थीं और बाल ताँबे के रंग के थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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