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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 14: राजा वेन की कथा
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श्लोक 43
श्लोक
4.14.43
विनिश्चित्यैवमृषयो विपन्नस्य महीपते: ।
ममन्थुरूरुं तरसा तत्रासीद्बाहुको नर: ॥ ४३ ॥
अनुवाद
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निश्चय करने के पश्चात साधु-संतों तथा मुनियों ने राजा वेन के मृत शारीर की जंघाओं का विशेष विधि से एवं अत्यन्त शक्ति के साथ मंथन किया। जिसके परिणामस्वरूप राजा वेन के शरीर से बौने जैसा एक पुरुष उत्पन्न हुआ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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