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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 14: राजा वेन की कथा
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श्लोक 42
श्लोक
4.14.42
नाङ्गस्य वंशो राजर्षेरेष संस्थातुमर्हति ।
अमोघवीर्या हि नृपा वंशेऽस्मिन् केशवाश्रया: ॥ ४२ ॥
अनुवाद
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मुनियों ने निर्णय लिया कि राजर्षि अंग के वंशजों का नाश नहीं होने देना चाहिए, क्योंकि इस वंश का वीर्य बहुत शक्तिशाली रहा है और इसकी संतानें प्रभु की भक्त रही हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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