श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 14: राजा वेन की कथा  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  4.14.41 
 
 
ब्राह्मण: समद‍ृक् शान्तो दीनानां समुपेक्षक: ।
स्रवते ब्रह्म तस्यापि भिन्नभाण्डात्पयो यथा ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  ऋषिगण विचार करने लगे कि यद्यपि ब्राह्मण शांत और निष्पक्ष होता है, क्योंकि वह सभी के प्रति समान रहता है, फिर भी उसका कर्तव्य है कि वह दीनों की उपेक्षा न करे। ऐसी उपेक्षा करने से उसकी आत्मिक शक्ति उसी प्रकार कम हो जाती है, जैसे कि फूटे बर्तन से पानी रिस जाता है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.