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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 14: राजा वेन की कथा
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श्लोक 38
श्लोक
4.14.38
एवं मृशन्त ऋषयो धावतां सर्वतोदिशम् ।
पांसु: समुत्थितो भूरिश्चोराणामभिलुम्पताम् ॥ ३८ ॥
अनुवाद
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जब ऋषिगण आपस में विचार-विमर्श कर रहे थे, तो उन्होंने हर दिशा से धूल की आँधी उठती देखी। यह आँधी उन चोरों और बदमाशों के भाग-दौड़ करने से उठी थी, जो शहरवासियों को लूट रहे थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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