वीक्ष्योत्थितांस्तदोत्पातानाहुर्लोकभयङ्करान् ।
अप्यभद्रमनाथाया दस्युभ्यो न भवेद्भुव: ॥ ३७ ॥
अनुवाद
उन दिनों देश में कई उपद्रव होते रहते थे जिससे समाज में भय और आतंक का माहौल था। इसीलिए सभी ऋषि-मुनि एक दूसरे से चर्चा करने लगे: चूँकि राजा की मृत्यु हो चुकी है और संसार में ऐसा कोई रक्षक नहीं है, इसलिए चोरों-डकैतों के कारण प्रजा पर विपत्ति आ सकती है।