श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 14: राजा वेन की कथा  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  4.14.37 
 
 
वीक्ष्योत्थितांस्तदोत्पातानाहुर्लोकभयङ्करान् ।
अप्यभद्रमनाथाया दस्युभ्यो न भवेद्भुव: ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  उन दिनों देश में कई उपद्रव होते रहते थे जिससे समाज में भय और आतंक का माहौल था। इसीलिए सभी ऋषि-मुनि एक दूसरे से चर्चा करने लगे: चूँकि राजा की मृत्यु हो चुकी है और संसार में ऐसा कोई रक्षक नहीं है, इसलिए चोरों-डकैतों के कारण प्रजा पर विपत्ति आ सकती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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