श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 14: राजा वेन की कथा  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  4.14.36 
 
 
एकदा मुनयस्ते तु सरस्वत्सलिलाप्लुता: ।
हुत्वाग्नीन् सत्कथाश्चक्रुरुपविष्टा: सरित्तटे ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  एक समय की बात है, जब ये सभी ऋषि सरस्वती नदी में स्नान करके अपने दैनिक यज्ञ-अग्नि में आहुति देने का कर्म कर रहे थे। उसके बाद वे नदी के किनारे बैठकर परमेश्वर और उनकी लीलाओं के बारे में चर्चा करने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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