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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 14: राजा वेन की कथा
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श्लोक 34
श्लोक
4.14.34
इत्थं व्यवसिता हन्तुमृषयो रूढमन्यव: ।
निजघ्नुर्हुङ्कृतैर्वेनं हतमच्युतनिन्दया ॥ ३४ ॥
अनुवाद
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महान ऋषियों ने इस प्रकार गुप्त क्रोध का इज़हार करते हुए राजा को तुरंत मारने का निश्चय कर लिया। अपनी निंदा के कारण राजा वेन पहले से ही मृत तुल्य था। इसलिए बिना किसी हथियार का उपयोग किए, ऋषियों ने केवल गुस्से भरे शब्दों से ही राजा वेन को मार डाला।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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