श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 14: राजा वेन की कथा  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  4.14.3 
 
 
श्रुत्वा नृपासनगतं वेनमत्युग्रशासनम् ।
निलिल्युर्दस्यव: सद्य: सर्पत्रस्ता इवाखव: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  वेन पहले से ही बहुत कठोर और क्रूर था। इसलिए जैसे ही राज्य के चोर-उचक्कों ने सुना कि वह शासक बन गया है, वे उससे बहुत डर गए और उन्होंने खुद को यहाँ-वहाँ छिपा लिया, जैसे चूहे खुद को साँप से बचाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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