श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 14: राजा वेन की कथा  »  श्लोक 26-27
 
 
श्लोक  4.14.26-27 
 
 
विष्णुर्विरिञ्चो गिरिश इन्द्रो वायुर्यमो रवि: ।
पर्जन्यो धनद: सोम: क्षितिरग्निरपाम्पति: ॥ २६ ॥
एते चान्ये च विबुधा: प्रभवो वरशापयो: ।
देहे भवन्ति नृपते: सर्वदेवमयो नृप: ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  विष्णु, ब्रह्मा, शिव, इंद्र, वायु, यम, सूर्यदेव, पर्जन्य, कुबेर, चंद्रमा, क्षितिदेव, अग्नि देव, वरुण तथा अन्य सभी देवता जो आशीर्वाद या शाप दे सकते हैं, वे सभी राजा के शरीर में निवास करते हैं। इसलिए राजा को देवताओं का आगार माना जाता है। देवता राजा के शरीर के अंग हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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