श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 14: राजा वेन की कथा  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  4.14.25 
 
 
को यज्ञपुरुषो नाम यत्र वो भक्तिरीद‍ृशी ।
भर्तृस्‍नेहविदूराणां यथा जारे कुयोषिताम् ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  तुम देवताओं के इतने भक्त हो, पर वे हैं कौन? सचमुच, इन देवताओं के प्रति तुम्हारा स्नेह उस कुलटा स्त्री के समान है, जो अपने विवाहित जीवन की परवाह न करके अपने प्रेमी पर सारा ध्यान देती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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