तद्विद्वद्भिरसद्वृत्तो वेनोऽस्माभि: कृतो नृप: ।
सान्त्वितो यदि नो वाचं न ग्रहीष्यत्यधर्मकृत् ।
लोकधिक्कारसन्दग्धं दहिष्याम: स्वतेजसा ॥ १२ ॥
अनुवाद
मुनिगणों ने आगे सोचा : यह सच है कि हम उसके चालाकी-भरे स्वभाव को अच्छी तरह जानते हैं, लेकिन फिर भी हमने ही उसे राजा बनाया है। अगर हम उसे अपनी सलाह मानने के लिए नहीं मना पाए तो जनता उसे ठुकरा देगी और हम भी जनता का साथ देंगे। ऐसी स्थिति में हम अपनी तपस्या की शक्ति से उसे भस्म कर देंगे।