निरूपित: प्रजापाल: स जिघांसति वै प्रजा: ।
तथापि सान्त्वयेमामुं नास्मांस्तत्पातकं स्पृशेत् ॥ ११ ॥
अनुवाद
हमने नागरिकों की सुरक्षा के लिए इस वेन को राजा नियुक्त किया था, परन्तु अब यह प्रजा का शत्रु बन बैठा है। ऐसी स्थिति में भी, हमें उसे तुरंत मनाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने पर हमें उसके पाप का प्रभाव नहीं पड़ेगा।