श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 14: राजा वेन की कथा  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  4.14.11 
 
 
निरूपित: प्रजापाल: स जिघांसति वै प्रजा: ।
तथापि सान्‍त्वयेमामुं नास्मांस्तत्पातकं स्पृशेत् ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  हमने नागरिकों की सुरक्षा के लिए इस वेन को राजा नियुक्त किया था, परन्तु अब यह प्रजा का शत्रु बन बैठा है। ऐसी स्थिति में भी, हमें उसे तुरंत मनाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने पर हमें उसके पाप का प्रभाव नहीं पड़ेगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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