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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 14: राजा वेन की कथा
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श्लोक 10
श्लोक
4.14.10
अहेरिव पय:पोष: पोषकस्याप्यनर्थभृत् ।
वेन: प्रकृत्यैव खल: सुनीथागर्भसम्भव: ॥ १० ॥
अनुवाद
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ऋषिगण आपस में विचार करने लगे कि सुनीथा के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण राजा वेन जन्मजात ही बहुत दुष्ट है। ऐसे दुष्ट राजा का समर्थन करना बिल्कुल दूध पिलाकर सर्प का पालन करने के समान है। अब वह सबके लिए संकटों का कारण बन गया है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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