श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  4.13.35 
 
 
इति व्यवसिता विप्रास्तस्य राज्ञ: प्रजातये ।
पुरोडाशं निरवपन् शिपिविष्टाय विष्णवे ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार राजा अंग को पुत्र-प्राप्ति कराने के लिए उन्होंने हर प्राणी के हृदय में निवास करने वाले भगवान विष्णु को आहुतियों और पूजा-अर्चना करने का फैसला लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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