श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 12: ध्रुव महाराज का भगवान् के पास जाना  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  4.12.46 
 
 
श्रुत्वैतच्छ्रद्धयाभीक्ष्णमच्युतप्रियचेष्टितम् ।
भवेद्भक्तिर्भगवति यया स्यात्‍क्‍लेशसङ्‌क्षय: ॥ ४६ ॥
 
अनुवाद
 
  जो कोई भी ध्रुव महाराज का आख्यान सुनता है और श्रद्धा और भक्ति के साथ उनके विशुद्ध चरित्र को समझने का बार-बार प्रयास करता है, वह शुद्ध भक्ति तल तक पहुँचता है और शुद्ध भक्ति करता है। ऐसे कृत्यों से मनुष्य भौतिक जीवन के तीनों दुखों को नष्ट कर सकता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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