महर्षि नारद ने कहा, अब सुनो, ध्रुव महाराज अपनी सौतेली माँ के कटु वचनों से बहुत दुखी हुए थे। वे महज़ पाँच साल की उम्र में जंगल चले गए और मेरे मार्गदर्शन में उन्होंने तपस्या की। भगवान विष्णु तो अजेय हैं, लेकिन ध्रुव महाराज ने भगवान के भक्तों के विशेष गुणों से युक्त होकर उन्हें जीत लिया।