श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 12: ध्रुव महाराज का भगवान् के पास जाना  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  4.12.42 
 
 
य: पञ्चवर्षो गुरुदारवाक्शरै-
र्भिन्नेन यातो हृदयेन दूयता ।
वनं मदादेशकरोऽजितं प्रभुं
जिगाय तद्भक्तगुणै: पराजितम् ॥ ४२ ॥
 
अनुवाद
 
  महर्षि नारद ने कहा, अब सुनो, ध्रुव महाराज अपनी सौतेली माँ के कटु वचनों से बहुत दुखी हुए थे। वे महज़ पाँच साल की उम्र में जंगल चले गए और मेरे मार्गदर्शन में उन्होंने तपस्या की। भगवान विष्णु तो अजेय हैं, लेकिन ध्रुव महाराज ने भगवान के भक्तों के विशेष गुणों से युक्त होकर उन्हें जीत लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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