श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 12: ध्रुव महाराज का भगवान् के पास जाना  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  4.12.2 
 
 
धनद उवाच
भो भो: क्षत्रियदायाद परितुष्टोऽस्मि तेऽनघ ।
यत्त्वं पितामहादेशाद्वैरं दुस्त्यजमत्यज: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  राजकोष के स्वामी कुबेर ने कहा: हे निष्पाप क्षत्रिय पुत्र! यह जानकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ कि अपने पितामह की सलाह पर तुमने वैरभाव को छोड़ दिया, हालाँकि इसे छोड़ना बहुत ही कठिन है। मैं तुमसे बेहद खुश हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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