बदरिकाश्रम में ध्रुव महाराज की इन्द्रियाँ पूर्णत: शुद्ध हो गईं क्योंकि वे नियमित रूप से स्वच्छ जल में स्नान करते थे। ध्यान लगाने के लिए उन्होंने उचित मुद्रा में बैठकर योगक्रिया से अपनी श्वास और प्राणवायु पर नियंत्रण किया। इस प्रकार, उन्होंने अपनी इन्द्रियों को पूरी तरह से संयमित कर लिया। तत्पश्चात्, उन्होंने अपने मन को भगवान् के अर्चाविग्रह रूप में एकाग्र किया, जो स्वयं भगवान् की पूर्ण प्रतिकृति है और इस प्रकार उस पर ध्यान केंद्रित करके वे गहन समाधि में प्रवेश कर गए।