ध्रुव महाराज ने जैसे ही अपने धनुष पर नारायण ऋषि द्वारा निर्मित अस्त्र को चढ़ाया, उससे सुनहरे फलों तथा हंस के पंखों से सुसज्जित बाण निकलने लगे। बाण शत्रु सैनिकों में प्रहार करते हुए उसी तरह से प्रवेश कर रहे थे जिस तरह मोर केकड़ों के ध्वनि करते हुए जंगल में प्रवेश करते हैं।