नायं मार्गो हि साधूनां हृषीकेशानुवर्तिनाम् ।
यदात्मानं पराग्गृह्य पशुवद्भूतवैशसम् ॥ १० ॥
अनुवाद
मनुष्य को शरीर को आत्मा नहीं समझना चाहिए और पशुओं की तरह दूसरों के शरीरों को नष्ट नहीं करना चाहिए। भगवान की भक्ति के मार्ग का अनुसरण करने वाले साधु-संतों ने इसे विशेष रूप से वर्जित किया है।