श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 10: यक्षों के साथ ध्रुव महाराज का युद्ध  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  4.10.20 
 
 
हतावशिष्टा इतरे रणाजिराद्
रक्षोगणा: क्षत्रियवर्यसायकै: ।
प्रायो विवृक्णावयवा विदुद्रुवु-
र्मृगेन्द्रविक्रीडितयूथपा इव ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  ध्रुव महाराज के बाण ने उन यक्षों के अंग-प्रत्यंग को खंड-खंड कर दिया, जो किसी तरह से जीवित रह गए थे। इस प्रकार से वे भागने लगे, जैसे कि हाथी शेर से हारकर भागते हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.