श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 10: यक्षों के साथ ध्रुव महाराज का युद्ध  »  श्लोक 11-12
 
 
श्लोक  4.10.11-12 
 
 
तत: परिघनिस्त्रिंशै: प्रासशूलपरश्वधै: ।
शक्त्यृष्टिभिर्भुशुण्डीभिश्चित्रवाजै: शरैरपि ॥ ११ ॥
अभ्यवर्षन् प्रकुपिता: सरथं सहसारथिम् ।
इच्छन्तस्तत्प्रतीकर्तुमयुतानां त्रयोदश ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  यक्ष सैनिकों की संख्या एक लाख तीस हजार थी; वे सभी अत्यन्त क्रुद्ध थे और ध्रुव महाराज की आश्चर्यजनक गतिविधियों को विफल करने की इच्छा लिए थे। उन्होंने पूरी शक्ति से महाराज ध्रुव और उनके रथ एवं सारथी पर विभिन्न प्रकार के पंख वाले तीर, परिघ [लोहे के गदा], निस्त्रिंश [तलवारें], प्रासशूल [त्रिशूल], परश्वध [लांसे], शक्तियाँ [पाइक], ऋष्टियाँ [भाले] और भृशुंडी हथियार बरसाए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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