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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 1: मनु की पुत्रियों की वंशावली
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श्लोक 20
श्लोक
4.1.20
शरणं तं प्रपद्येऽहं य एव जगदीश्वर: ।
प्रजामात्मसमां मह्यं प्रयच्छत्विति चिन्तयन् ॥ २० ॥
अनुवाद
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वे मन ही मन सोच रहे थे कि मैं जिस परमेश्वर की शरण में आया हूँ और जो सम्पूर्ण जगत का स्वामी है, हे प्रभु! आप मुझ पर प्रसन्न होकर मुझे अपने समान ही एक पुत्र प्रदान करें।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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