विदुर उवाच
ब्रह्मन् कथं भगवतश्चिन्मात्रस्याविकारिण: ।
लीलया चापि युज्येरन्निर्गुणस्य गुणा: क्रिया: ॥ २ ॥
अनुवाद
श्री विदुर ने पूछा : हे महान ब्राह्मण, चूंकि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान सम्पूर्ण आध्यात्मिक समग्रता हैं और अपरिवर्तनशील हैं, तो फिर वे भौतिक प्रकृति के गुणों और उनकी गतिविधियों से कैसे जुड़े हैं? यदि यह उनका लीला-कर्म है, तो फिर अपरिवर्तनशील के कार्यकलाप कैसे घटित होते हैं और प्रकृति के गुणों के बिना ही गुणों का प्रदर्शन कैसे करते हैं?