विदुर उवाच
संछिन्न: संशयो मह्यं तव सूक्तासिना विभो ।
उभयत्रापि भगवन्मनो मे सम्प्रधावति ॥ १५ ॥
अनुवाद
विदुर बोले: हे शक्तिशाली मुनि, मेरे स्वामी, आपके विश्वसनीय शब्दों ने पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान और जीवों से जुड़े मेरे सभी संशयों को दूर कर दिया है। अब मेरा मन पूरी तरह से उनमें प्रवेश कर रहा है।