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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 6: विश्व रूप की सृष्टि
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श्लोक 18
श्लोक
3.6.18
त्वचमस्य विनिर्भिन्नां विविशुर्धिष्ण्यमोषधी: ।
अंशेन रोमभि: कण्डूं यैरसौ प्रतिपद्यते ॥ १८ ॥
अनुवाद
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जब चमड़ी की अलग से उत्पत्ति हुई, तो स्पर्श के नियंत्रक देवता अपने अलग-अलग अंगों के साथ उसमें प्रवेश कर गए। इस तरह जीवों को स्पर्श से खुजली और खुशी महसूस होती है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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