श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 6: विश्व रूप की सृष्टि  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.6.12 
 
 
तस्याग्निरास्यं निर्भिन्नं लोकपालोऽविशत्पदम् ।
वाचा स्वांशेन वक्तव्यं ययासौ प्रतिपद्यते ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  उनके मुख अथवा ऊर्जा से उत्पन्न ऊष्मा से भौतिक कार्यों के प्रबंधक अलग हो गए और उसके बाद अपने-अपने पदों के अनुसार उनमें प्रवेश कर गए। जीव उसी ऊर्जा से शब्दों के द्वारा अपने को व्यक्त करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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