श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 5: मैत्रेय से विदुर की वार्ता  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.5.2 
 
 
विदुर उवाच
सुखाय कर्माणि करोति लोको
न तै: सुखं वान्यदुपारमं वा ।
विन्देत भूयस्तत एव दु:खं
यदत्र युक्तं भगवान् वदेन्न: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  विदुर बोले: हे महान ऋषि, इस संसार का हर प्राणी सुख पाने के लिये कामनाओं से भरी क्रियाओं में लग जाता है, परंतु उसे न तो तृप्ति मिलती है न ही उसके दुख में कोई कमी आती है। इसके विपरीत ऐसे कार्यों से उसका दुख और बढ़ जाता है। अत: कृपा करके हमें यह मार्गदर्शन करें कि वास्तविक सुख के लिए कोई कैसे जीवन व्यतीत करे?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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