तदस्य कौषारव शर्मदातु-
र्हरे: कथामेव कथासु सारम् ।
उद्धृत्य पुष्पेभ्य इवार्तबन्धो
शिवाय न: कीर्तय तीर्थकीर्ते: ॥ १५ ॥
अनुवाद
हे मैत्रेय, हे दुखियों के मित्र, केवल परम प्रभु की महिमा ही सारे संसार के लोगों का कल्याण करने वाली है। इसलिए जिस तरह मधुमक्खियाँ फूलों से मधु एकत्र करती हैं, उसी प्रकार कृपया सभी कथाओं का सार—भगवान की कथा—वर्णन करें।