श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 5: मैत्रेय से विदुर की वार्ता  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.5.12 
 
 
मुनिर्विवक्षुर्भगवद्गुणानां
सखापि ते भारतमाह कृष्ण: ।
यस्मिन्नृणां ग्राम्यसुखानुवादै-
र्मतिर्गृहीता नु हरे: कथायाम् ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  आपके मित्र महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यास ने पहले ही अपने महान ग्रन्थ महाभारत में भगवान के दिव्य गुणों का वर्णन कर रखा है। किन्तु इसका सारा उद्देश्य सामान्य जन को आकर्षित करने के लिए उन्हें लौकिक कथाओं जैसी रूचिकर कहानियों के माध्यम से कृष्ण कथा (भगवद्गीता) की ओर आकर्षित करना है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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