मुनिर्विवक्षुर्भगवद्गुणानां
सखापि ते भारतमाह कृष्ण: ।
यस्मिन्नृणां ग्राम्यसुखानुवादै-
र्मतिर्गृहीता नु हरे: कथायाम् ॥ १२ ॥
अनुवाद
आपके मित्र महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यास ने पहले ही अपने महान ग्रन्थ महाभारत में भगवान के दिव्य गुणों का वर्णन कर रखा है। किन्तु इसका सारा उद्देश्य सामान्य जन को आकर्षित करने के लिए उन्हें लौकिक कथाओं जैसी रूचिकर कहानियों के माध्यम से कृष्ण कथा (भगवद्गीता) की ओर आकर्षित करना है।