श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 30: भगवान् कपिल द्वारा विपरीत कर्मों का वर्णन  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.30.7 
 
 
सन्दह्यमानसर्वाङ्ग एषामुद्वहनाधिना ।
करोत्यविरतं मूढो दुरितानि दुराशय: ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि वह हमेशा चिंता की आग में जलता रहता है, फिर भी वह मूर्ख अपने तथाकथित परिवार और समाज का भरण-पोषण करने के लिए उन आशाओं को पूरा करने के लिए हर तरह के गलत काम करता रहता है जो कभी पूरी नहीं हो सकती हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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