श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 28: भक्ति साधना के लिए कपिल के आदेश  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  3.28.6 
 
 
स्वधिष्ण्यानामेकदेशे मनसा प्राणधारणम् ।
वैकुण्ठलीलाभिध्यानं समाधानं तथात्मन: ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  शरीर के भीतर के छह चक्रों में से किसी एक पर प्राण और मन को स्थिर करना और इस प्रकार अपने मन को परमपुरुष भगवान् की दिव्य लीलाओं में केन्द्रित करना, मन की समाधि या समाहित अवस्था कहलाती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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