स्वधिष्ण्यानामेकदेशे मनसा प्राणधारणम् ।
वैकुण्ठलीलाभिध्यानं समाधानं तथात्मन: ॥ ६ ॥
अनुवाद
शरीर के भीतर के छह चक्रों में से किसी एक पर प्राण और मन को स्थिर करना और इस प्रकार अपने मन को परमपुरुष भगवान् की दिव्य लीलाओं में केन्द्रित करना, मन की समाधि या समाहित अवस्था कहलाती है।