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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 26: प्रकृति के मूलभूत सिद्धान्त
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श्लोक 6
श्लोक
3.26.6
एवं पराभिध्यानेन कर्तृत्वं प्रकृते: पुमान् ।
कर्मसु क्रियमाणेषु गुणैरात्मनि मन्यते ॥ ६ ॥
अनुवाद
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विस्मृति के कारण दिव्य जीव प्रकृति के प्रभाव को अपना कार्यक्षेत्र मान लेता है और इस प्रकार प्रेरित होकर गलती से स्वयं को कर्मों का कर्ता मानता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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